निर्जला व्रत
आज भीमसेनी एकादशी है (10 जून, 2022) जिसमें निर्जला व्रत रहने की परंपरा है. निर्जला व्रत का अर्थ है बिना कुछ खाए, पिए पूरा दिन बिताना; फिर संध्या काल में भोजन लेना. प्रथम दृष्टि में यह बहुत कठोर और कठिन साधना लगती है. कुछ लोगों को यह आत्म-प्रताड़ना जैसी भी प्रतीत हो सकती है.

लेकिन निर्जला व्रत का एक बहुत गूढ़ अर्थ है. जब हम पूरा दिन अन्न, जल ग्रहण नहीं करते, तो धीरे-धीरे हम ऊर्जाहीन महसूस करते हैं. यह एक सूक्ष्म रूप में मृत्यु है. इस प्रकार हम मृत्यु में धीरे-धीरे प्रवेश करते हैं. यदि हम जागरूक हैं, तो महसूस कर पाते हैं कि शरीर से पृथक हम कुछ और भी हैं. शरीर तो दुर्बल होता जाता है, लेकिन इस घटना को जानने वाला एक दृष्टा वहाँ महसूस होने लगता है.

यह दृष्टा भाव ही परम तत्व है, अंतिम तत्व है, जीवन का उद्गम है. इसी की खोज हम सभी को है. यही मृत्यु के पार गहनतम शांति और आनंद का एकमात्र स्रोत है. इसी को जानने के उद्देश्य से उपवास जैसी परंपरा की रचना की गई थी.

एक बार फिर दोहरा दूँ: उपवास में ख़ाली पेट होना और जागरूक होना दो सबसे ज़रूरी बातें हैं. बिना खाए, पिए पूरा दिन बिताना संभव न हो, तो कुछ हल्का आहार, जैसे फलों का रस ले लें. और फिर दिन भर जागरूक रहें अपने शरीर में होने वाले परिवर्तनों के प्रति. किसी भगवान का पूजा-पाठ करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि ऐसी कोई भी क्रिया आपको उपवास के मूल उद्देश्य से भटका सकती है.
आपके अंदर मौजूद दृष्टा ही भगवान है, और उपवास के द्वारा उसकी उपस्थिति को महसूस करना ही पूजा-पाठ है.